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क्रोध के प्रभाव, नियत्रंण और प्रबंधन

क्रोध की विशेषताएं तनाव, निराशा और चिड़चिड़ापन हो सकती हैं। क्रोध के दौरान व्यक्ति की ह्रदय गति बढ़ जाती है और उसके ऊर्जा हार्मोन, एड्रेनालाईन और नॉरएड्रेनालाईन का स्तर भी बढ़ जाता है।

by FreeValleys

क्रोध का स्वरूप व प्रभाव

क्रोध या गुस्सा हम सभी को आता है क्योंकि यह एक प्रकार की भावना है जिसे हर कोई महसूस करता है। गुस्सा करना मानव की प्रवृत्ति है इसलिए सभी जानते हैं कि क्रोध क्या है और क्रोध आने पर कैसा महसूस होता है। कभी कभी गुस्सा होने पर झुंझलाहट होती है तो कभी इतना गुस्सा आ जाता है कि नियंत्रित कर पाना अत्यंत दुस्कर हो जाता है।

क्रोध का होना एक सामान्य बात है जो कि मानव स्वरूप ही है लेकिन जब यह क्रोध नियंत्रण से बाहर हो जाता है तो घातक सिद्ध होता है चाहें वह स्वयं के लिए हो अथवा अन्य के लिए। क्रोध का विनाशकारी स्वरूप सदैव नुकसान पंहुचाता है। इसके कारण अनेक प्रकार की समस्याओं की उत्पत्ति होती है और सम्बन्धों पर नकारात्मक असर पड़ता है, साथ ही जीवन की समग्र गुणवत्ता भी बुरी तरह से प्रभावित होती है।

गुस्सा एक ऐसी एक भावनात्मक स्थिति है जिसमें व्यक्ति का भावनात्मक स्तर इतना तीव्र हो जाता है कि व्यक्ति का स्वयं पर नियंत्रण खत्म हो जाता है और यह स्तर व्यक्ति के स्वयं के लिए भी हानिकारक हो जाता है। इसके कारण व्यक्ति में अनेक प्रकार के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन होते हैं जिन्हें व्यक्ति नियंत्रित नहीं कर पाता।

यह अनुभव अक्सर लोगों को तब होता है जब उन्हें लगता है कि उनके साथ कुछ अन्याय हुआ है या उनके साथ कुछ न कुछ गलत किया गया है। जब यह भावना अनुभव होती है तब रक्तचाप बढ़ जाता है, रक्त संचार में वृद्धि होती है और व्यक्ति के मन में विध्वंसकारी विचार आना शुरू हो जाते हैं। इन विचारों के तर्कों का कोई आधार नहीं होता जिस कारण गुस्से की भावना अपने चरम स्तर पर शीघ्र ही चली जाती है और यही समस्याओं का सृजन करती है।

क्रोध की विशेषताएं तनाव, निराशा और चिड़चिड़ापन हो सकती हैं। क्रोध के दौरान व्यक्ति की ह्रदय गति बढ़ जाती है और उसके ऊर्जा हार्मोन, एड्रेनालाईन और नॉरएड्रेनालाईन का स्तर भी बढ़ जाता है। जिनकी अधिकता शरीर के लिए नुकसानदेह हो सकती है।

गुस्से की स्थिति में दूरदर्शिता समाप्त हो जाती है जिस कारण क्रोध आने पर ज्यादा दूर तक का नहीं सोच पाते और यहां तक कि गुस्से में किए जाने वाले कार्य और व्यवहार से प्राप्त होने वाले परिणामों के बारे में भी नहीं सोच पाते ।

व्यक्ति के दिमाग मे प्रतिशोध अथवा बदले की भावना ज्वलंत हो जाती है और वह किसी न किसी प्रकार से सामने वाले व्यक्ति को क्षति पंहुचाकर ही शांति प्राप्त करने की जिद्द में लगा रहता है। इसलिए व्यक्ति का दिमाग गुस्से में शांत ढंग से कार्य कर पाने असमर्थ रहता है। व्यक्ति का  दिमाग तभी संतुलित होकर सोच समझ सकता है जब उसका अपनी भावनाओं पर पूरा नियंत्रण रहता है।

प्रत्येक व्यक्ति में अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने की क्षमता अलग अलग होती है जिन्हें वे अपनी भावनाओं से निपटने के लिए चेतन और अचेतन दोनों तरह की विभिन्न प्रक्रियाओं का उपयोग करते हैं।

नियंत्रित, परिवर्तन, पुनर्निर्देशन

यह सत्य है कि क्रोध एक सामान्य भावना है लेकिन यह व्यक्ति को नियत्रंण में ले उससे पहले आवश्यक हो जाता है कि क्रोध पर ही नियत्रंण पा लिया जाए अन्यथा की स्थिति में इसके परिणाम अच्छे नहीं मिलते और नुकसान ही होता है। लोग या तो अपनीं भावनाओं को व्यक्त करते हैं या उन्हें शांत करने का प्रयास करते हैं और यदि भावनाएं शांत नहीं भी हो पातीं हैं तो वे अपनीं भावनाओं को दबाने का प्रयास करते हैं।

गुस्से को समझकर उसे नियमित करते हुए नियंत्रित करने का प्रयास किया जा सकता है और फिर गुस्से से उत्पन हुए विचारों को परिवर्तित या पुनर्निर्देशित किया जा सकता है। ऐसा तब होता है जब लोग अपने गुस्से पर काबू रखते हैं, उसके बारे में सोचना बंद कर देते हैं और किसी सकारात्मक चीज़ पर ध्यान केंद्रित करते हैं। इसका उद्देश्य होता है कि किस प्रकार से गुस्से को रोककर या नियंत्रित कर उसे सही ढंग से रचनात्मक व्यवहार में परिवर्तित किया जाए ताकि गुस्से की भावना पुनर्निर्देशित हो सके और उसका उपयोग सकरात्मक रूप में हो सके।

इस प्रकार की प्रतिक्रिया में ख़तरा यह होता है कि यदि इन भावनाओं की अभिव्यक्ति सकरात्मक रूप में नहीं हुई तो भावनाओं को दबाने का प्रयास व्यक्ति के स्वयं के लिए नुकसानदेह हो सकता है।

गुस्सा उत्पन्न करने वाली चीजों अथवा लोगों से तो छुटकारा पाना लगभग असंभव सा रहता है क्योंकि लोग उन्हें बदल नहीं सकते लेकिन क्रोध प्रबंधन द्वारा गुस्से से होने वाली क्षति को शून्य या कम किया जा सकता है। क्रोध के प्रबंधन में लोगों को क्रोध की प्रतिक्रिया के प्रति व्यवहार करना सिखाया जाता है। क्रोध प्रबंधन के उपाय के अंतर्गत व्यक्ति में होने वाले शारिरिक और मनोवैज्ञानिक दोनों प्रकार के परिवर्तनों को नियंत्रित करना सिखाया जाता है ताकि क्रोध के दुष्परिणामों से बचा सके:

गहन विश्राम करना

इसमें लोगों को गहनता के साथ विश्राम करना सिखाया जाता है। लम्बी गहरी सांसों को लेने और छोड़ने से क्रोध की भावना को शांत करने में मदद मिलती है। इसके लिए कुछ कोर्स भी कराए जाते हैं जिसके माध्यम से चरणबद्ध तरीकों के बार बार अभ्यास करने से क्रोध को शांत करने में मदद मिलती है।

संज्ञानात्मक पुनर्गठन

इस प्रक्रिया में व्यक्ति अपने विचारों पर नियत्रिंत कर गुस्से से उबरने का प्रयास करता है क्योंकि गुस्से की अवस्था ने व्यक्ति की सोच अतिरंजित प्रकार की हो जाती है, उसके सोचने समझने का तरीका अतार्किक होने लगता है जिस कारण वह कुछ भी अच्छा नहीं सोच पाता। इसमें व्यक्ति को पुराने विचारों की जगह नए विचारों को लाना होता है जो अधिक तार्किक होते हैं।

बेहतर और स्पष्ट बातचीत

कई बार अस्पष्ट बातचीत होने पर भी क्रोध की भावना उत्पन्न हो जाती है तो ऐसी स्थिति में यदि आपस मे बातचीत कर ली जाए जो अधिक स्पष्ट और बेहतर हो तो भी गुस्से को शांत किया जा सकता है। इसमें अपनी प्राथमिकताओं के साथ साथ सामने वाले व्यक्ति की प्रथमिकताओं को भी अधिक स्पष्टता के साथ सुना और समझा जाता है, ताकि दोनों ओर से शांति को बढ़ावा दिया जा सके और क्रोध की स्थिति न आए।

समस्या समाधान के विकल्पों का सृजन 

कई बार ऐसा देखने में आता है कि समस्या का समाधान न होने पर कुंठा, नीरसता आदि भावनाएं जन्म लेती हैं जो क्रोध को बढ़ावा देतीं हैं। ऐसी स्थिति में समस्या के समाधान से अधिक विकल्पों का निर्माण किया जाता है ताकि समस्या का निराकरण हो जाए और क्रोध की स्थिति से बचा जा सके। इस प्रकार क्रोध की स्थिति से बचा जा सकता है।

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