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माता पिता का रिश्ता : बच्चे के भविष्य की नींव

अच्छी पेरेंटिंग बच्चे के बेहतर भविष्य की नींव होती है।अतः प्रत्येक माता पिता अथवा अभिभावक को बच्चे के साथ अपने बर्ताव और सम्बन्ध में अच्छी पेरेंटिंग के इन गुणों को समाहित करना आवश्यक है। 

by FreeValleys

एक रिश्ते में जितना स्नेह होता है, वह रिश्ता उतना ही अधिक गहरा होता है। बच्चों की हर जरूरत को उनके पेरेंट्स ही पूरा करते हैं। हर बच्चे में उसके माता पिता के गुण ही समाहित होते हैं। चाहें वो शारिरिक गुण हों, मानसिक हों, भवनात्मक हों या फिर नैतिक गुण हों, सभी गुण बच्चे पेरेंट्स से प्राप्त करते हैं।बच्चे अधिकतर अपने माता पिता के इर्द गिर्द ही अपना सारा समय बिताते हैं। इसका सीधा असर बच्चों पर पड़ता ही है।

यह भी सत्य है कि पेरेंट्स ही बच्चे के प्राथमिक शिक्षक होते हैं जिनसे बच्चा बाहरी परिवेश के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है और बाहरी वातावरण को बच्चा धीरे धीरे जानने लगता है। एक बच्चे को उसकी देखभाल के लिए उसके पेरेंट्स होते हैं जहां से उसे स्नेह और सुरक्षा का कंपलीट एहसास होता है। यही रिश्ता और एहसास बच्चे में उसके पेरेंट्स के प्रति अधिक सम्मान पैदा करते हैं जिससे पेरेंट्स चाइल्ड रिलेशनशिप बेहतर हो सके।

माता पिता का रिश्ता बच्चे के साथ

बच्चे की शुरुआत ही अपने पेरेंट्स के अनुकरण से होती है। जैसा पेरेंट्स करते हैं, वही बच्चे भी करने लगते हैं क्योंकि जन्म से बच्चा अपने पेरेंट्स से ही सीखना शुरू करता है और उनके ही आसपास रहता है। पेरेंट्स से ही बच्चे की सभी जरूरतें पूरी होती हैं। जैसे जैसे बच्चों की उम्र बढ़ती है, उनकी आवश्यकताओं का भी विस्तार होने लगता है और बच्चों को पूरी तरह पेरेंट्स ही डिपेंड होना पड़ता है।

पेरेंट्स सदैव ही अपने बच्चों को अत्यधिक उत्साहित होते हैं और साथ ही फिक्रमंद भी होते हैं। माता पिता हर वो कोशिश करके अपने बच्चों की आवश्यकताओं को पूरी करते हैं जो बच्चे के लिए जरूरी होता है। इसलिए पेरेंट्स के द्वारा प्राथमिकता के आधार पर बच्चे की वही जरूरत पूरी की जाती जाती है, जिसे वो उचित और आवश्यक समझते हैं।

नैतिक मूल्यों की जानकारी

पेरेंट्स द्वारा अपने बच्चों के लिए नैतिक मूल्यों की जानकारी प्रस्तुत की जाती है क्योंकि बच्चे जिज्ञासु स्वरूप के होते हैं। जब उनकी सभी आवश्यकताओं में से कुछ ही आवश्यकताएं पूरी होती हैं और अन्य आवश्यकताओं को इग्नोर कर दिया जाता है तो यदि बच्चा पेरेंट्स से इस बारे में सवाल करता है कि उसकी सभी इच्छाओं को पूरा क्यों नही किया गया या उनको इग्नोर क्यों कर दिया गया?

तब बच्चों को समझाना होता है कि क्या और कितना सही है तथा क्या और कितना गलत है, जितना सही था, उसे पूरा कर दिया गया और जो सही नही था उसे इग्नोर कर दिया है। ऐसा करने से बच्चों के मन में धीरे धीरे स्पष्टता आने लगती है और वो धीरे धीरे अपनी जानकारी बढ़ाने लगते हैं।

सकारात्मकता का विकास

बच्चे तभी अच्छे से ग्रोथ कर पाते हैं जब उनकी अच्छी पेरेंटिंग हो। माता पिता का बच्चे को डील करने का तरीका अच्छा होने से बच्चों में आत्मविश्वास विकसित होता है। पेरेंट्स की आशावादी विचारधारा से बच्चों में सकारात्मकता आती है इसलिए पेरेंट्स को बच्चों के सामने कभी निराशापूर्ण व्यवहार अथवा कोई ऐसा कार्य नही करना चाहिए जो बच्चों पर नकारात्मक असर डाले एवं बच्चों में हीन भावना विकसित हो।

बच्चों की आयु बढ़ने के साथ साथ उनके प्रति सही तौर तरीके भी अपनाने होते हैं जो बच्चों में गर्मजोशी भर दे। इसके लिए आवश्यक है कि हमेशा बच्चों से प्यार से बात की जाए लेकिन जरूरत पड़ने पर उनको आपके व्यवहार से यह भी लग जाए कि उनके द्वारा किया कार्य सही नही था इसलिए आपकी नाराजगी उनको जाहिर की गई।

उत्तरदायित्व की भावना

बच्चे के साथ पेरेंट्स अथवा अभिभावक का रिश्ता ऐसा होना कि बच्चा उन्हें अपनी हर बात बता सके। बच्चे को अपनी समस्या शेयर करने के लिए पेरेंट्स की उपलब्धता होनी आवश्यक है। कुछ मामलों में जो स्पेशल बच्चे होते है वो अपनी समस्या नहीं बता पाते तो ऐसे मामलों में पेरेंट्स को ही उनकी समस्यायों पर स्वतः ध्यान देने कि आवश्यकता होती है।

यदि बच्चे को किसी समस्या का सामना करना पड़ता है और वह अपने पेरेंट्स को इंफॉर्म करता तो यह बहुत अच्छी बात है। ऐसी स्थिति में पेरेंट्स को बच्चे के लिये पर्याप्त समय देना आवश्यक है , उनका ध्यान रखना आवश्यक है ताकि बच्चों को किसी प्रकार की हानि न हो और बच्चा आसान तरीके से यह समझ सके कि पेरेंट्स द्वारा उनका उचित ख्याल रखा जा रहा है।

धीरे धीरे यही प्रवृत्ति आगे चलकर बच्चों में उत्तरदायित्व की भावना को भी विकसित करती है ताकि बच्चे अपनी नई जिम्मेदारियों का निर्वाह करने में सफल हो सकें।

प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल का विकास

बच्चों की अच्छी परवरिश उनमें बेहतर प्रॉब्लम सॉल्विंग स्किल्स को विकसित कर सकती है क्योंकि हर बच्चे को अपनी समस्या का समाधान स्वयं से करना अच्छा गुण है।अगर बच्चा अपनी समस्या का समाधान खुद ही नहीं कर सकेगा तो आगे चलकर उसकी निर्भरता पेरेंट्स पर बढ़ जाती है जो बच्चे के भविष्य को दृष्टिगत रखते हुए ठीक नही। अतः जब भी बच्चे कोई भी समस्या का अनुभव करें तो उनकी समस्या के निराकरण में उनकी मदद करनी जरूरी होती है।

यदि बच्चे को समस्या है और उसके समाधान में उस बच्चे की मदद की जाए तो उसके ओवरऑल विकास के लिए अच्छा रहता है। लेकिन यदि बच्चे अपनी समस्या का सही समाधान नहीं कर पा रहे हैं तो प्रत्यक्ष रूप से बच्चों की मदद करना भी आवश्यक है।

इन सबके साथ साथ जरूरी होता है कि बच्चों के लिए कुछ सीमाओं और नियमों को भी निर्धारित किया जाए ताकि बच्चा सही गलत में अंतर कर सके। अगर कोई सीमा निर्धारित नहीं की गई है अथवा कोई नियम नहीं है तो बच्चों के मन में जो आ जाए, उसी को वो करने लगेंगे जो कि बच्चे के लिए ही ठीक नही है और इससे उनको भविष्य में अनेक समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

माता पिता का रिश्ता बच्चे के बेहतर भविष्य की नींव होता है।अतः प्रत्येक माता पिता अथवा अभिभावक को बच्चे के साथ अपने बर्ताव और सम्बन्ध में अच्छी पेरेंटिंग के इन गुणों को समाहित करना आवश्यक है।

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