व्यक्ति के जीवन में प्यार एक महत्वपूर्ण और खूबसूरत हिस्सा है जो रिश्तों को मजबूत और माधुर्य बनाता है, लेकिन अगर प्यार से डर लगने लगे तो यह भयावह भी हो सकता है। ऐसा होने पर एक तरफ जहां कुछ लोगों के मन में डर होना सामान्य बात है, वहीं कुछ लोगों को प्यार में पड़ने के विचार से ही घबराहट, डर और बेचैनी होने लगती है क्योंकि उन्हें प्यार करना अत्यंत ही भयावह लगने लगता है। इसे ही फिलोफोबिया कहा जाता है जहां व्यक्ति को प्यार होने से डर लगता है और वहअलगाव की स्थिति में रहने लगता है।
जीवन में स्वयं की तकलीफों से उबरने की हर कोई कोशिश करता है जो स्वाभाविक है। लेकिन समस्याएं तब उत्पन्न होती हैं जब व्यक्ति के प्यार का डर उसकी शारीरिक या मानसिक परेशानी का कारण बनता है या घनिष्ट सम्बन्ध बनाने की क्षमता को प्रभावित करता है।
स्वयं की तरफ से प्यार देना और अन्य जनों से प्यार पाना अच्छा लगना चाहिए लेकिन जब प्यार करने में डर शुरू होता है तो फिर व्यक्ति स्वयं को बचाने का प्रयास करता है ऐसी स्थिति में वह स्वयं को अकेला अनुभव करता है और उसे अपने जीवन में सब कुछ सूनापन लगने लगता है। जब फिलोफोबिया के कारण लोग प्यार से डरने लगते हैं, तो उनकी दुनिया अकेली हो सकती है।
फिलोफोबिया : एक भावनात्मक समस्या
सरल भाषा में फिलोफोबिया एक भावनात्मक समस्या है जिसमें व्यक्ति प्यार में पड़ने के डर के साथ साथ किसी भी रिश्ते में बंधने से डरता है। यह रिश्ते के टूटने या असुरक्षित होने के डर के कारण तीव्र भय या रोमांटिक रिश्तों से बचने के रूप में प्रकट हो सकता है। अन्य विशिष्ट फिलोफोबिया के समान ही कई लक्षण होते हैं, विशेष रूप से वे जो प्रकृति में सामाजिक होते हैं।
यह लक्षण इतने गंभीर रूप से व्यक्ति को प्रभावित करते हैं कि उसकी पूरी जिंदगी ही बदल जाती है। व्यक्ति को पता होता हैं कि प्यार में रहने के डर का कोई औचित्य ही नहीं है लेकिन फिर भी वह अपने इस डर को नियंत्रित कर पाने स्वयं को असमर्थ पाता है।
फिलोफोबिया होने पर व्यक्ति के जीवन की गुणवत्ता प्रभावित होती है और धीरे धीरे व्यक्ति कार्य करने में भी स्वयं को असहज महसूस करने लगता है और व्यक्ति वचनबद्धता से दूर हो जाता है। इस प्रकार के डर का एक नकारात्मक पक्ष यह है कि यह व्यक्ति को एकांत में रखता है, वह सामाजिक गतिविधियों में स्वयं को शामिल नहीं करता।
यह उन धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं से भी विकसित हो सकता है जो प्रेम को प्रतिबंधित करती हैं। यह अंदर से आने वाली प्रतिक्रिया के प्रति एक निश्चित अपराधबोध और हताशा का प्रतिनिधित्व करता है।
अक्सर यह भी देखा गया है कि फिलोफोबिया से पीड़ित लोग कई रोमांटिक रिश्तों में रहते तो हैं लेकिन बहुत सतही स्तर पर रिश्तों को निभाते हैं क्योंकि किसी भी रिश्ते के प्रति न तो वो वचनबद्ध होते हैं और न ही गंभीर होते हैं। इसलिए बिना सोचे समझे और बिना किसी सही निर्णय के वे बार बार रिश्तों में ही उलझे रहते हैं। फीलोफोबिया से पीड़ित लोगों को लगातार डर रहता है कि उन्हें प्यार में धोखा मिलेगा या किसी भी कारण से यह काम नहीं करेगा।
प्यार से डर के कारण एवं प्रभाव
फिलोफोबिया कई कारणों से हो सकता है। अगर व्यक्ति के पिछले अनुभव बुरे रहे हों तो उसके अंदर प्यार के प्रति डर की भावना गहराई तक बैठ जाती है। व्यक्ति के जीवन में अगर कोई ट्रामा घटित हो जाता है या फिर सामाजिक दबाव, परिवार की उम्मीदें, निम्न आत्म सम्मान, तिरस्कृत होने का डर आदि बहुत से ऐसे कारण है जो फिलोफोबिया को बढ़ावा देने में सहायक होते हैं। फिलोफोबिया कई प्रकार से व्यक्ति के जीवन को प्रभावित कर सकता है-
रिश्तों को स्थापित करने में कठिनाई
फिलोफोबिया से अंतरंग संबंध बुरी तरह से प्रभावित होते हैं। पीड़ित व्यक्ति ऐसे रिश्तों को शुरू करने में जटिलता का अनुभव करता है और यदि एक बार शुरू कर भी कर ले तो उन्हें निभाए रखना उसके लिए बड़ी चुनौती बन जाती है जिसके कारण वह अकेलापन महसूस कर सकता है। रिश्तों में बने रहने के बावजूद भी अकेलापन बड़ा दुखदाई होता है।
भावनात्मक रूप से तनाव
प्यार में भय के कारण एक तरह से भावनात्मक तनाव उत्पन्न होता है जो रिश्तों पर नकरात्मक प्रभाव डाल सकता है और धीरे धीरे रिश्ता टूटने के कगार पर पहुंच जाता है। फिलोफोबिया से पीड़ित व्यक्ति स्वयं को सहज महसूस नहीं करता जो कि आपसी संबंधों को आगे बढ़ने से रोक सकता है।
भावनात्मक दूरी
संबंधों में प्यार के डर और अपरिपक्व रिश्ते से पार्टनर्स में भावनात्मक दूरी उत्पन्न होने लगती है जो उनके बीच अंतरंग संबंध में एक तरह से खाई का काम कर सकती है। भावनात्मक दूरी होने के कारण संबंधों में बने रहने पर भी वे एक दूसरे के करीब आने से कतराते हैं और मिलने से बचते हैं।
बातचीत करने में बाधाएं
फिलोफोबिया के कारण व्यक्ति बातचीत करना बन्द करने लगता है और अपने विचारों को खुल कर अभिव्यक्त करने से कतराता है जिसके फलस्वरूप पार्टनर्स के बीच संबंध में घनिष्ठता नही बनती और आपसी तालमेल बिखरने लगता है। भावनाओं की अभिव्यक्ति में बातचीत जरूरी होती है जो हो नहीं पाती जिसके कारण संबंध विकसित नहीं होते।
मानसिक स्वास्थ्य पर कुप्रभाव
फिलोफोबिया मानसिक स्वास्थ्य को भी प्रभावित करता है क्योंकि प्यार में पड़ने का डर व्यक्ति में डिप्रेशन, चिंता आदि उत्पन्न करता है जिससे व्यक्ति की दैनिक दिनचर्या बिगड़ सकती है और व्यक्ति की प्रोडक्टिविटी घटनी शुरू होने लगाती है। वह कार्य को कर सकने में स्वयं को असमर्थ समझने लगता है।
फिलोफोबिया लोगों में कोई असामान्य स्थिति नहीं होती इसलिए इसका गलत निदान होने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। अक्सर प्यार में पड़ने पर कुछ झिझक और घबराहट महसूस होना एक तरह से स्वाभाविक बात है। किंतु यदि समय रहते इस झिझक और घबराहट को व्यक्ति दूर नहीं कर पाता तो यह अतार्किक भय में बदल जाता है। तब व्यक्ति न चाहते हुए भी इससे उबर नहीं पाता।
ऐसी स्थिति में उसे सहयोग और समर्थन की आवश्यकता होती है। इसके लिए व्यक्ति को चाहिए कि वह अपने परिवार से, दोस्त और पार्टनर (यदि वह पहले से ही किसी रिश्ते में हो) से इस बारे में खुलकर बातचीत कर उनसे इस परेशानी का हल ढूंढ़ने में मदद ले। व्यक्ति को अगर इससे भी लाभ नहीं होता तो वह प्रोफेशनल काउंसलर या साइकोलॉजिस्ट की सहायता से फिलोफोबिया से स्वयं को उबार सकता है।