किसी भी देश का भविष्य वहां के युवाओं यानि कि छात्रों पर निर्भर करता है और छात्रों का भविष्य वहां की शिक्षा प्रणाली पर निर्भर होता है। यदि देश की शिक्षा प्रणाली अच्छी है तो वहां के छात्र को सीखने के बेहतर अवसर मिलते हैं, जो उनके उच्च बौद्धिक विकास को विकसित करने में मददगार होता है।
यदि छात्रों को बेहतर शिक्षा से वंचित होना पड़ रहा है तो उनके सीखने की क्षमता निम्न स्तर की हो जाती है और वे प्रभावी रूप से अपने आप मे सुधार नहीं कर पाते हैं। शिक्षा ग्रहण करने से ही उन्हें अपने स्वरूप के साथ साथ देश और दुनिया के भी स्वरूप की जानकारी प्राप्त होती है।
शिक्षकों के प्रयास
प्रत्येक संस्थान के शिक्षकों को कोशिश करनी चाहिए कि वहां पढ़ने वाले बच्चों का विकास करें और अपनी कमियों को सुधार कर उच्च कोटि की शिक्षा प्रणाली विकसित करें। चूंकि प्रत्येक संस्थान के छात्र एक दूसरे से अलग अलग होते हैं, इसलिए प्रत्येक की क्षमता अलग अलग होती है। उनमें बौद्धिक क्षमता के अनुसार कोई कम सीखता है तो कोई ज्यादा सीखता है।
लेकिन यह काफी हद तक शिक्षक के सिखाने के तरीकों पर निर्भर करता है कि वह कितना प्रभावी ढंग से उन्हें सीखा पाता है। इसीलिए प्रत्येक शिक्षक को उनकी क्षमताओं और जरूरतों को ध्यान में रखते हुए उन्हें शिक्षित करने का हरसंभव बेहतर प्रयास करना चाहिए। यह काफी चुनौतीपूर्ण है लेकिन इसे सफलतापूर्वक किया जा सकता है।
छात्रों को शिक्षकों का मार्गदर्शन और परिजनों से पूर्ण सहयोग मिले तो उनके जीवन मे सफल होने की सम्भावनाएं बढ़ सकती हैं क्योंकि शिक्षक बच्चे को बेहतर शिक्षा और मार्गदर्शन ही दे सकते हैं, छात्र पर अतिरिक्त दबाब नहीं डाल सकते। वे छात्र द्वारा किए जा रहे प्रयासों को नियंत्रित नहीं कर सकते कि छात्र कैसे और कितने प्रयास कर कर रहे हैं।
छात्र की स्वयं के प्रति दृढ़ता
स्वयं के प्रति दृढ़ता होनी जरूरी है ताकि उसमें सीखने की ललक हमेशा बनी रहे और यही गुण उसके सुनहरे भविष्य की बुनियाद होता है। इस बुनियादी आधार को मजबूत करने में उसके माता-पिता की भूमिका भी अहम होती है जिनके माध्यम से उसे शिक्षा ग्रहण करने संबंधी आवश्यक सहायता मिलती हैं।
छात्र को संबंधित शिक्षण संस्थान (जहां से वह शिक्षा ग्रहण करता है) से अलग अलग अनुभवों से गुजरना पड़ता है। यह अनुभव सुखदाई भी होते हैं और दुखदाई भी हो सकते हैं। इन्हीं अनुभवों से छात्र अच्छा भी सीखते हैं और बुरा भी सीखते हैं। अब यह उस पर निर्भर करता है कि वह अपने अंदर क्या ग्रहण करता है। इसलिए प्रत्येक छात्र को सीखने के प्रति इतना जागरूक रहना चाहिए कि वह प्रत्येक अहम जानकारी और ज्ञान को आत्मसात करता रहे और आत्मसात ही नहीं करें बल्कि उसे अपने जीवन मे लागू करने की कोशिश भी करे।
ऐसा करने से उसके ज्ञान में, सोचने-समझने में, व्यवहार आदि में उत्कृष्टता का समावेश होता है और उसके स्वयं के प्रति आत्मविश्वास विकसित होता है जिससे वह बेहतर शैक्षणिक निष्पादन तो करता ही है लेकिन साथ ही साथ उसके अपने आस पास के लोगों से चाहें वो शिक्षक हों, परिजन हों, सहपाठी हों या फिर समाज के अन्य वर्ग के लोग हों, मधुर सम्बंध होते हैं।
यदि छात्र अधिक सफलतापूर्वक ज्ञान का अर्जन करते हुए जीवन की हर चुनौती का सामना करता है और हर मुश्किल को दूर करता है तो उसमें हर समस्या के उचित समाधान खोजने की भी स्किल का धीरे धीरे विकास होना शुरू हो जाता है। छात्रों में उत्कृष्टता विकसित करने के लिए कुछ अतिरिक्त प्रयास भी किए जा सकते हैं:
छात्रों में सीखने की जिज्ञासा
छात्रों में सीखने की जिज्ञासा उन्हें कुछ न कुछ सीखने और उसे व्यवहार में उतारने के लिए प्रेरित करने में मदद करती है और ऐसा तभी होता है जब उसके के मन मे नई चीजों के प्रति जानकारी जुटाने की जिज्ञासा मन में रहती है। जब वह हर एक चीज के बारे में जानने के लिए उत्सुक रहता है तो उसके बारे में सवाल जबाब करता है जिससे उसके ज्ञान में वृद्धि होती है ।
सकरात्मक दृष्टिकोण
अगर छात्र में सकरात्मकता विकसित हो जाती है तो वह बुरी चीजों को इग्नोर कर अच्छी चीजों के प्रति आकर्षित होगा और उन्हें एप्रोच करेगा जिससे वह अच्छा प्रदर्शन करेगा और उसकी सफलता का मार्ग प्रशस्त हो सकेगा। सकरात्मक छात्र कभी भी मन मे असफलता का भाव नहीं लाते क्योंकि अगर किन्हीं कारणवश अगर वो सफल नहीं भी होते हैं तो भी वो नए सिरे से लक्ष्यों को निर्धारित कर उनकी तरफ अग्रसर हो जाते हैं।
संगठित तौर तरीके
अगर छात्र अपने कार्य और व्यवहार में संगठित तौर तरीके अपनाते हैं तो यह उनके सीखने की क्षमता पर प्रत्यक्ष प्रभाव डालते हैं क्योंकि इससे उनके जीवन मे बिखराव नहीं आता जो उनकी आवश्यक चीजों के अच्छे प्रबंधन और रख रखाव में सहायक सिद्ध होता है।
निर्धारित लक्ष्यों के प्रति एकाग्रता
यह सब तभी सम्भव हो पाता है जब छात्र एक दिनचर्या का नियमित ढंग से अनुसरण करते हुए दिए गए निर्देशानुसार संस्थान के शिक्षण कार्य या होमवर्क को पूरा कर मेनहत और लगन के साथ पूर्ण करे। अगर कोई परेशानी हो रही हो तो उसे अपने टीचर्स या पेरेंट्स के साथ खुलकर बातचीत करनी चाहिए और उन्हें अपनी समस्या के बारे में विस्तार से बताना चाहिए जिससे छात्र को सपोर्ट मिलता है।
अंततः वह इतना जानने और समझने लगते हैं कि उनके जीवन में कार्य सम्बंधी क्या-क्या बाधाएं और चुनौतीयां आ रही हैं लेकिन समस्याओं के बावजूद वह एकाग्रता के साथ अपने चुने हुए लक्ष्यों को पाने में लगे रहते हैं।
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