वृक्ष तभी फलता फूलता है ज़ब उसकी जड़ों में मजबूती होती है , ठीक वैसे ही बुद्धिमानी और सफलता वही व्यक्ति प्राप्त करता है जो जीवन के कुछ मूलभूत नियमों को समझ लेता है। भारत में अमूल्य ज्ञान कोष के भंडार छुपे हुए हैं जो मानव जीवन के प्रत्येक पहलू को जड़ों से मजबूती प्रदान करके उन्हें उर्जित और विकसित करते हैं। एक ऐसी ही ज्ञान पद्धति है उत्तरबोधि मुद्रा, जो संस्कृत के दो शब्दों से मिलकर बनती है, उत्तर और बोधि। पहले शब्द उत्तर का अर्थ है ऊपर की ओर, और दूसरे शब्द बोधि का अर्थ है जागृति के समीप।
उत्तरबोधि मुद्रा मन को शांत करती है और तंत्रिकाओं को आराम देती है। जो व्यक्ति के आत्मविकास में अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। चूँकि इस मुद्रा हाथों की पांचों उंगलियां शामिल होती हैं अतः यह मनुष्य के शरीर में मौजूद पंच महाभूतों (जल, अग्नि, पृथ्वी, वायु और आकाश) को उर्जित करती है। इस मुद्रा को नियमित करने से व्यक्ति के अंदर सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। इस मुद्रा का अभ्यास करने से समस्या-समाधान और निर्णय लेने जैसी क्षमताओं में वृद्धि की जा सकती है। उत्तरबोधि मुद्रा ऊर्जा की गति को ऊपर की तरफ करने का कार्य करती है जिससे बुद्धि अथवा चेतना का उदय होता है। ध्यान में इस मुद्रा का विशेष महत्त्व है। चूँकि ध्यान में इसका महत्व है अतः यह मुद्रा आत्मज्ञान हेतू बुद्ध के शक्ति और बुद्धत्व कोभी दर्शाती है।