इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी क्या होती है?
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी एक ऐसी स्थिति है जिसमें व्यक्ति की इंटेलिजेंस सीमित हो जाती है। इस शब्द का उपयोग किसी व्यक्ति के संज्ञानात्मक कामकाज और कौशल की सीमाओं से होता है, जिसमें वैचारिक, सामाजिक और व्यावहारिक कौशल, जैसे भाषा, सामाजिक और आत्म-देखभाल कौशल आदि शामिल हैं। ये सीमाएँ किसी व्यक्ति को कुछ भी सीखने के लिए रोकती हैं हैं, जिसके फलस्वरूप व्यक्ति की लर्निंग स्किल्स प्रभावित होती ही हैं साथ ही व्यक्ति व्यवहारात्मक पक्ष का विकास स्पष्ट तौर पर नही हो पाता है।
यह व्यक्ति की स्वतंत्र रूप से जीने के लिए आवश्यक क्षमताओं को बाधित करती है। यह स्थिति जीवन भर के लिए होती है जिसके लक्षणों की शुरुआत बचपन में ही दिखाई देने लगती है। इसलिए इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से पीड़ित लोगों को जीवन भर कुछ कुछ न कुछ अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता होती ही है जो कि एक सामान्य व्यक्ति से अलग है क्योंकि सामान्य लोग अपनी रोजमर्रा जिंदगी को आसानी से जी पाते हैं किन्तु इंटेलेक्चुअल डिसएबल लोग सामान्य जीवन की दैनिक दिनचर्या को प्रभावी रूप से नही जी पाते।
इंटेलेक्चुअल डिसएबल लोगों में मनोचिकित्सीय समस्याओं की भी कोमोरबीडीटी रहती है, ऐसे व्यक्ति में चिंता, तनाव, अवसाद आदि समस्याओं के विकसित होने का की सम्भावना और भी अधिक बढ़ जाती है क्योंकि उनमें नकारात्मक आत्म-छवि विकसित होने का खतरा बना रहता है जिसका मुख्य कारण है कि ऐसे लोग समाज के अन्य दूसरे लोगों के साथ बातचीत करने, सामाजिक अंतर्क्रिया करने और सामाजिक अपेक्षाओं को पूरा करने में कठिनाई का अनुभव करते हैं।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से सम्बंधित लक्षणों को अन्य स्थितियों से अलग करने के लिए शारीरिक परीक्षण महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इसकी पहचान करने के लिए एक पूर्ण न्यूरोलॉजिकल एग्जामिनेशन किया जाना आवश्यक होता है जो इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी और उससे सम्बंधित कोमोरबीड लक्षणों की में अंतर कर सकता है।
इसकी पहचान करने के लिए विजुअल और हियरिंग टेस्ट भी महत्वपूर्ण हैं क्योंकि असामान्य दृष्टि या श्रवण संचार में कठिनाई होने के कारण भी भाषा और सामाजिक कौशल देर से विकसित होते हैं जो इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी के समानांतर ही होते हैं।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से पीड़ित व्यक्तियों में मोटर संबंधी प्रॉबलम्स जैसे स्पैस्टिसिटी, हाइपोटोनिया, हाइपररिफ्लेक्सिया और अनैच्छिक गतिविधियों से सम्बंधित लक्षण भी उपस्थित होते हैं। इन लक्षणों और प्रभावों के बेहतर ढंग से मैनेज करने में मदद कर सकते हैं ताकि इन लोगों की भी जिंदगी को कुछ यहद तक आसान बनाया जा सके।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी क्यों होती है?
बौद्धिक विकलांगता 18 वर्ष की आयु से पूर्व ही व्यक्ति में पता चल जाती है। इसका कारण जन्म से पूर्व भी सकता है जब शिशु, माता के गर्भ में पल रहा होता है, यदि उस समय किसी प्रकार की कोई दुर्घटना हो और शिशु के मस्तिष्क में क्षति हो जाती है। इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी मुख्य रूप से तब होती है जब ब्रेन में कोई चोट, बीमारी हो जाती है, जिसके कारण ब्रेन के पार्ट्स में किसी प्रकार की क्षति हो जाती है।
इसके जन्म से पूर्व मुख्य कारणों में डाउन सिंड्रोम, भ्रूण अल्कोहल सिंड्रोम, नाजुक एक्स सिंड्रोम, आनुवांशिक स्थितियां, जन्म दोष और संक्रमण आदि हैं। जन्म के बाद यदि व्यक्ति के ब्रेन में दुर्घटनावश किसी प्रकार की इंजरी, चोट, क्षति हो जाती है तो भी इसके कारण बच्चा इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से पीड़ित हो जाता है।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी का प्रबंधन और चिकित्सा
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी का सही समय पर प्रबंधन अति आवश्यक और महत्वपूर्ण चरण है जिसमें इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी के प्रभावों को बढ़ने से रोकने, डिसएबिलिटी के लक्षणों को कम करने के उचित उपायों के साथ और रोजमर्रा की जिंदगी की गुणवत्ता में सुधार करने के लिए लक्ष्यों को निर्धारित करने की शुरुआत की जाती है। इसके लिए अलग अलग प्रकार की थेरेपी शुरू की जाती है जिसमें उपचार को उचित रूप से व्यवस्थित करने के लिए बौद्धिक विकलांगता के इलाज के विभिन्न तरीकों को शामिल किया जाता है ताकि ऐसे लोगों को सपोर्ट मिल सके जो इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से पीड़ित हैं।
शैक्षिक सहायता
इंटेलेक्चुअल डिसएबल बच्चे को शैक्षणिक सहायता की बहुत अधिक आवश्यकता होती है क्योंकि इनका बौद्धिक स्तर कम होने के कारण नई चीजों को सीखने में बहुत अधिक कठिनाई होती है जिसके परिणामस्वरूप इन बच्चों का शैक्षणिक निष्पादन भी निम्न स्तर का होता है।
स्कूल्स में स्पेशल एजुकेशन का प्रावधान है जिसमें आम तौर पर बच्चों की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने पर ध्यान देने के तथा शैक्षणिक संशोधनों में व्यापक रूप से सहायता की जाती है, ताकि कम से कम प्रतिबंधात्मक वातावरण में व्यक्तिगत आवश्यकताओं के आधार पर सहायता, व्यवहार कौशल, व्यावसायिक कौशल, संचार कौशल, कार्यात्मक जीवन कौशल और सामाजिक कौशल को प्राप्त किया जा सके।
स्कूल्स में इंटेलेक्चुअल डिसएबल बच्चे की मॉनिटरिंग करना बहुत आवश्यक होता है क्योंकि कई बार बच्चे स्कूल्स में पर्याप्त शिक्षा ग्रहण नही लर पाते जिसके लिए उनके घर पर परिवार का अन्य सदस्यों के अतिरिक्त सपोर्ट की जरूरत होती है।
बिहेवियरल इंटरवेंशन
जिन बच्चों में इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी पाई जाती है, उनके लिए बिहेवियरल इंटरवेंशन एक बहुत ही अहम पक्ष है। इस इंटरवेंशन का उद्देश्य अवांछनीय व्यवहारों को हतोत्साहित करते हुए सकारात्मक व्यवहारों को प्रोत्साहित करना होता है जिसके लिए रिनफोर्समेंट प्रदान कर बच्चों के व्यवहार में बदलाव लाने का प्रयास किया जाता है। यह व्यवहारिक प्रशिक्षण का एक प्रभावी तरीका है जिससे बच्चों की लर्निंग पर पॉजिटिव इफेक्ट पड़ता है और बच्चे बेहतर ढंग से सीखते हैं।
फैमिली एजुकेशन
फैमिली को एजुकेट करना अपने आप मे एक बड़ी चुनौती होती है जिसका असर बच्चों पर पड़ता ही है। यदि फैमिली उच्च स्तर पर शिक्षित है तो बच्चे बेहतर ढंग से अपनी समस्याओं से निजात पाने में समर्थ हो सकते हैंअन्यथा की स्थिति में बच्चे को बहुत अधिक जटिलताओं का सामना करना पड़ सकता है।
परिवार के सदस्यों को इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी की सम्पूर्ण जानकारी होनी अति आवश्यक है ताकि वो भी बच्चे की समस्याओं को पूर्णत: समझ सकें। जितना अधिक वो समझेंगे, बच्चे को परिवार से उतना ही अच्छा सपोर्ट भी मिलेगा साथ ही परिजनों के स्वयं के तनाव को कम करने में आसानी रहेगी।
इसके अलावा इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी के समुचित प्रबंधन को वोकशनल ट्रेनिंग भी काफी हद तक प्रभाववित करती है जिसमें बच्चे को स्वयं की साफ सफाई, ड्रेसिंग सेंस सिखाया जाता है ताकि बच्चे अपनी जिम्मेदारियों का निर्वाह स्वतंत्र रूप से कर सकें और आत्मनिर्भर होकर समाज का महत्वपूर्ण अंग बनते हुए सामाजिक दायित्वों की पूर्ति कर सकें।
इंटेलेक्चुअल डिसएबल बच्चों में अटेंशन डिफिसिट डिसऑर्डर, डिप्रेशन, चिंता आदि अधिकतर समय तक चलती ही रहती हैं जिसका समय पर ध्यान रखकर उसका इलाज करना आवश्यक होता है।
इंटेलेक्चुअल डिसएबिलिटी से पीड़ित बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सपोर्ट करना ही मुख्य लक्ष्य होना चाहिए।
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