किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए उसमें बहुत सी चीजों का निवेश करने की आवश्यकता होती है। अगर रिश्ते में विश्वास, त्याग, प्यार और ईमानदारी हो तो हर रिश्ता मजबूती से स्थापित होता है जो जीवन भर फलता-फूलता रहेगा। वहीं अगर रिश्ते में कहीं भी इन सब की थोड़ी सी भी कमी हो जाए तो उस रिश्ते की डोर कमजोर पड़ने लगती है और धीरे-धीरे टूट जाती है। तब कोई भी साथी अपनी कमियों को स्वीकार करने की स्थिति में नहीं होता है और न ही इसके बारे में सोचने की कोशिश करता है। इन सब पर काबू पाने का सबसे आसान तरीका यह है कि पहले यह समझ लें कि आपका पार्टनर के साथ आपका रिश्ता किस स्टेज या स्तर पर है?
मूल स्तर : किसी रिश्ते की मूल अवस्था में, दो व्यक्ति केवल विपरीत लिंग होने के कारण एक-दूसरे के प्रति आकर्षित होते हैं और उन्हें ऐसा लगता है जैसे वे एक क्षण भी दूसरे व्यक्ति के बिना नहीं रह सकते। यह वह चरण है जहां काल्पनिक रूप से एक दूसरे के लिए कुछ भी किया जा सकता है। इस अवस्था में दोनों पार्टनर अपना काफी समय सिर्फ यह सोचकर बिताते हैं कि वे दुनिया में सबसे ज्यादा दूसरे व्यक्ति से प्यार करते हैं, हालांकि यहां यह नहीं कहा जा सकता है कि उनके बीच बिल्कुल भी प्यार नहीं है, लेकिन यह वास्तविकता से दूर कहीं काल्पनिक स्थिति अधिक होती है। मूलभूत स्तर में, प्यार पूरी तरह से शरीर के हार्मोन के नियंत्रण में होता है और भावनाओं का संचालन पूरी तरह हार्मोन्स पर निर्भर होता है।
प्राथमिक स्तर : मूल अवस्था में कुछ समय बीतने के बाद प्राथमिक अवस्था में प्रवेश होता है जहाँ दोनों पार्टनर्स एक दूसरे को केवल शरीर के रूप में न देखते हुए एक दूसरे को बुद्धि के स्तर पर समझने और देखने लगते हैं। एक रिश्ते में यह अवस्था बहुत महत्वपूर्ण होती है। क्योंकि इसमें वे पहली बार हार्मोन के कब्जे से थोड़ा बाहर निकलने की कोशिश करते हैं और सामने वाले को बुद्धि के बल पर देखते हैं और अगर वह व्यक्ति बुद्धि के पैमाने पर खरा नहीं उतरता है या समझ के स्तर पर सामंजस्य नहीं रख पाता है तब रिश्ते के टूटने की सम्भावनायें इसी चरण में अधिक होती है।
माध्यमिक स्तर : जब दो लोगों की समझ प्राथमिक स्तर पर एक दूसरे को स्वीकार करती है, तो संबंध माध्यमिक चरण में प्रवेश करता है जहां दो लोग एक दूसरे के बारे में सोचने और समझने के अलावा अन्य लोगों और परिस्थितियों जैसे परिवार, दोस्तों, समाज या करियर इत्यादि के बारे में भी सोचने व समझने लगते हैं। यह वह चरण है जहां किसी भी रिश्ते को मजबूत बनाने के लिए सबसे ज्यादा मेहनत की जाती है। इस स्तर तक पहुँचने के बाद किसी भी रिश्ते में प्रेम से भी बढ़कर त्याग के बीज का रोपण होने लगता है।
आखिरी स्तर : कई उतार-चढ़ावों से गुजरने के बाद जब कोई रिश्ता आखिरी पड़ाव पर पहुंच जाता है तो पूरी तरह से निस्वार्थ प्यार का जन्म होता है और रिश्ते के इस पड़ाव पर पहुंचने के बाद दोनों पार्टनर्स का एक दूसरे से अलग होना नामुमकिन सा लगता है, इसलिए इस मुकाम पर पहुंचने वाले लोग एक-दूसरे के मन और भावनाओं को ऐसे समझने लगते हैं मानो अपने ही मन और भावनाओं को समझ रहे हों। यह अवस्था एक दूसरे के लिए अथाह प्रेम को महसूस करने वाली होती है। लेकिन इस अवस्था को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए मूल स्तर से माध्यमिक स्तर तक सभी चरणों का ध्यान रखना आवश्यक है।